नजरिया: वर्चुअल दुनिया युवा है और तेजी से बढ़ रही है और कोई कंपनी स्थायी जगह का दावा नहीं कर सकती, तो क्या गेमिंग कंपनियां गूगल, एपल को पीछे छोड़ेंगी?
महामारी और लॉकडाउन के पहले ही डिजिटल गेम्स समय काटने के पसंदीदा तरीके के रूप में उभर रहे थे। लेकिन जब लाइव एंटरटेनमेंट बंद हो गया तो वर्चुअल एंटरटेनमेंट ने तेजी से उड़ान भरी। अप्रैल के बाद से हर हफ्ता, पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में अमेरिकी बॉक्स ऑफिस में 97% गिरावट और गेमिंग रेवेन्यू में 50% इजाफे के साथ खत्म हुआ है।
तेज इंटरनेट ने मोबाइल फोन पर डिजिटल गेम्स को और मजेदार बना दिया है, जिससे ग्लोबल गेमिंग रेवेन्यू 2010 के 20 अरब डॉलर के आंकड़े से बढ़कर इस साल 160 अरब डॉलर तक पहुंच गया। यह किताबों, संगीत या फिल्मों के रेवेन्यू से ज्यादा है।
गेमिंग सिर्फ मनोरंजन के अन्य स्वरूपों की जगह ही नहीं ले रही, बल्कि डिजिटल थ्रीडी माहौल दे रही है, जिसमें लोग संवाद कर सकते हैं, कंटेंट बना सकते हैं और ज्ञान को नए तरीकों बता सकते हैं। इन्हें रचनात्मक कोडर्स ने खेलने के उद्देश्य से बनाया है, लेकिन ये तेजी से बढ़ते प्लेटफॉर्म वर्चुअल इकोनॉमी ही नहीं, बल्कि वर्चुअल दुनिया के भविष्य को आकार दे रहे हैं।
लॉकडाउन के दौरान गेमिंग प्लेटफॉर्म कई इवेंट्स की जगह बनकर उभरे हैं। जानकार शिक्षक वहां ऑनलाइन क्लास दे रहे हैं, जहां छात्र पहले ही अपना समय बिता रहे हैं। यानी ट्विच और डिस्कॉर्ड जैसी गेम केंद्रित साइट्स। लोगों ने ‘एनिमल क्रॉसिंग’ में शादियां और ‘फोर्टनाइट’ में कंसर्ट आयोजित किए। पेनसिल्वेनिया विश्वविद्यालय, शिकागो विश्वविद्यालय और अन्य विश्वविद्यालयों ने ‘माइनक्राफ्ट’ में स्कूल की थ्रीडी प्रतिकृतियां बनाईं और कुछ ने वहां ग्रैजुएशन सेलिब्रेशन किया।
ये थ्रीडी वर्ल्ड्स अच्छा बिजनेस हैं। फोर्टनाइट को ही ले लीजिए। एपिक गेम्स का यह गेम ‘फ्रीमियम’ मॉडल इस्तेमाल करता है। यानी प्लेयर्स गेम के थ्रीडी वर्ल्ड में मुफ्त में खेल सकते हैं, लेकिन उसमें वे वर्चुअल एसेसरीज, जैसे उपकरण, कपड़े (स्किन्स), डांस मूव के अलावा नेशनल फुटबॉल लीग जैसे बाहरी विक्रेताओं की ब्रांडेड चीजें तक खरीद सकते हैं। फोर्टनाइट की पिछले साल अनुमानित कमाई 1.8 अरब डॉलर थी, जिसमें ज्यादातर कमाई 35 करोड़ रजिस्टर्ड प्लेयर्स को वर्चुअल सामान बेचकर हुई थी।
गेमिंग कंपनियों के खतरे को भांपते हुए एपल, एमेजॉन और गूगल जैसी बड़ी इंटरनेट कंपनियां समानांतर ऑनलाइन दुनिया में अपनी हिस्सेदारी को नियंत्रित करने में लग गई हैं। माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों ने पहले ही माइनक्राफ्ट की निर्माता मोजांग स्टूडियोज जैसी ऑनलाइन गेमिंग कंपनी खरीद ली है तथा उसके पास कई और खरीदने के संसाधन हैं।
आलोचक इंटरनेट दिग्गजों पर मोबाइल ऐप्स के 120 अरब डॉलर के वैश्विक मार्केट में से अनुचित हिस्सा वसूलने के आरोप लगाते हैं, जिसमें एक-तिहाई हिस्सा गेमिंग ऐप्स का है। अब यह समय आ गया है कि टेक जाइंट्स के खिलाफ खड़ी होने वाली कंपनी एक गेमिंग कंपनी, एपिक, ही है। पिछले हफ्ते एप बिक्री में से 30% हिस्सा न देने पर एपल और गूगल ने अपने एप स्टोर्स से ‘फोर्टनाइट’ हटा दिया। एपिक ने मुकदमा दायर कर दिया और हिस्से को ‘दमनकारी’ टैक्स बताया।
बड़ी टेक कंपनियां अजेय नहीं हैं, जैसी वे लगती हैं। याद है, आईबीएम, इंटल और माइक्रोसॉफ्ट को कभी डिजिटल युग की बड़ी चुनौती की तरह देखा जाता था। वर्चुअल दुनिया युवा है और तेजी से बढ़ रही है और कोई कंपनी स्थायी जगह का दावा नहीं कर सकती।
कई गेमिंग कंपनियां उस चरण में पहुंच गई हैं, जहां गूगल और फेसबुक एक दशक पहले थे। यानी लाखों यूजर्स को आकर्षित कर रही हैं लेकिन अभी वे प्रत्येक यूजर से उतना पैसा नहीं कमा रहीं जितना कमा सकती हैं। दूसरे शब्दों में वे अभी और बढ़ेंगी। इन कंपनियों के पास मजबूत समर्थन भी है। उदाहरण के लिए चीनी टेक जाएंट टेंसेंट की 10 सबसे ज्यादा कमाई वाले गेम्स में से 7 गेम्स की कंपनियों में हिस्सेदारी है, जिनमें एपिक भी है।
गेमिंग प्लेटफॉर्म्स के आधार पर बनी वर्चुअल दुनिया उन लोगों को बेचैन कर सकती है जो डिजिटल गेम्स को समय की बर्बादी और असामाजिक व्यवहार का बड़ा कारण बताते हैं। लेकिन यह नजरिया पुराना हो गया। अब यहां तक माना जा रहा है कि गेम्स खेलने के कई फायदे हो सकते हैं, जिनमें तर्क कौशल, प्रेरणा और सीखने की कंसेप्ट बेहतर होना शामिल हैं।
गेमिंग आम टू-डी ऑनलाइन अनुभव को तीसरा डाइमेंशन जोड़कर बेहतर बना सकती है। इसका नतीजा एक संपूर्ण ‘दुनिया’ होगी, जहां लोग ज्यादा बेहतर ढंग से काम, खेल, पढ़ाई और खरीदारी कर सकते हैं, बेहतर सामाजिक संवाद, रचनात्मकता और इनोवेशन को प्रोत्साहित कर सकते हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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